केवल कुछ लोगों की गंदगी फैलाने की आदत यदि पूरे शहर के लिए परेशानी बन जाए तो यह समस्या नागरिकों से अधिक प्रशासन की बन जाती है। सवाल यह नहीं है कि लोग क्यों गंदगी फैलाते हैं बल्कि यह है कि वर्षों से यह सब देखते हुए भी व्यवस्था ने उन्हें रोकने के लिए क्या किया। जब सड़कें धूल से अटी हों नालियां कचरे से भरी हों और निर्माण सामग्री खुलेआम बिखरी रहे तो यह साफ संकेत है कि प्रशासन ने नियंत्रण की जिम्मेदारी से हाथ खींच लिया है।
हर शहर में नियम मौजूद हैं। कचरा सड़क पर फेंकना प्रतिबंधित है निर्माण कार्यों में ढंकाव जरूरी है और सार्वजनिक स्थानों को गंदा करना दंडनीय अपराध माना जाता है। इसके बावजूद खुलेआम उल्लंघन हो रहा है। कारण साफ है कि नियम तो हैं लेकिन उनका भय नहीं है। जब न जुर्माना लगता है न काम रोका जाता है और न कोई जवाबदेही तय होती है तो असामाजिक आदतें स्वाभाविक रूप से बढ़ती हैं।
प्रशासन अक्सर यह तर्क देता है कि जनता सहयोग नहीं करती। यह आधा सच है। जनता का एक हिस्सा निश्चित रूप से लापरवाह है लेकिन पूरे शहर को उसकी कीमत चुकानी पड़े यह न्यायसंगत नहीं है। जिम्मेदार नागरिक टैक्स भी दें नियम भी मानें और फिर भी धूल गंदगी और प्रदूषण में सांस लें यह व्यवस्था की विफलता है न कि नागरिक कर्तव्य की।
सबसे चिंताजनक स्थिति तब बनती है जब निर्माण एजेंसियां और ठेकेदार ही गंदगी के सबसे बड़े स्रोत बन जाते हैं। बिना ढंके मलबा टूटी सड़कों पर उड़ती धूल और अधूरे कार्य महीनों तक पड़े रहते हैं। यह सब प्रशासन की अनुमति और उदासीनता के बिना संभव नहीं है। यदि एक दिन भी सख्ती से निगरानी हो तो तस्वीर बदल सकती है लेकिन इच्छाशक्ति का अभाव साफ दिखाई देता है।
स्वच्छता अभियान और जागरूकता पोस्टर अपनी जगह जरूरी हैं लेकिन वे अनुशासन का विकल्प नहीं हो सकते। नियमों का पालन तभी होता है जब उल्लंघन पर तत्काल और कठोर कार्रवाई हो। जब तक गंदगी फैलाने वालों को यह संदेश नहीं मिलेगा कि इसकी कीमत चुकानी पड़ेगी तब तक शहर की हालत नहीं सुधरेगी। कानून का सम्मान दंड के साथ ही जन्म लेता है।
यह भी समझना होगा कि गंदगी केवल सौंदर्य का मुद्दा नहीं है। यह सीधे स्वास्थ्य से जुड़ा सवाल है। सड़क की धूल बच्चों बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए गंभीर खतरा है। इसके बावजूद यदि प्रशासन इसे प्राथमिकता नहीं देता तो यह लापरवाही नहीं बल्कि जनस्वास्थ्य के प्रति अपराध के समान है।
अब समय आ गया है कि प्रशासन स्वच्छता को भाषण और फाइलों से बाहर निकालकर जमीन पर उतारे। गंदगी फैलाने वालों पर बिना भेदभाव कार्रवाई हो चाहे वे आम नागरिक हों या ठेकेदार। तभी जनता को भरोसा होगा कि शहर उनका है और उसकी रक्षा व्यवस्था की जिम्मेदारी भी उतनी ही है। जब तक प्रशासन कठोर नहीं होगा तब तक शहर यूं ही कुछ लोगों की आदतों की सजा भुगतता रहेगा।


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