राम गोपाल "गार्ग्य"
भारत में चार नए श्रमिक कोड लागू होने जा रहे हैं और यह बदलाव केवल कानून बदलने की सामान्य प्रक्रिया नहीं है, बल्कि देश के श्रमिक ढांचे को नए समय के अनुरूप ढालने की एक बड़ी और ऐतिहासिक कोशिश है। वर्षों से भारत के श्रम कानून जटिल, बिखरे हुए और कई मामलों में आपस में विरोधाभासी थे। उद्योगों को एक ही काम के लिए कई तरह की मंजूरियाँ लेनी पड़ती थीं, अलग-अलग विभागों में कई रिपोर्टें जमा करनी होती थीं और निरीक्षण की प्रक्रिया भी अस्पष्ट होने के कारण परेशानी का कारण बनती थी। दूसरी ओर करोड़ों मजदूर, खासकर असंगठित क्षेत्र के, कोई औपचारिक सुरक्षा या सुविधा नहीं पा रहे थे। इस पृष्ठभूमि में सरकार ने पुराने सभी कानूनों को सरल बनाकर चार नए श्रमिक कोड तैयार किए, ताकि पूरा ढांचा एकीकृत, आधुनिक और समझने में आसान बन सके।

सरकार का मानना है कि नए श्रमिक कोड भारत की बदलती अर्थव्यवस्था के अनुरूप एक बड़ा और आवश्यक कदम हैं। सरकार की सोच यह है कि यदि नियम सरल होंगे और प्रक्रियाएँ डिजिटल होंगी, तो उद्योगों का कामकाज तेज होगा, निवेश बड़े स्तर पर बढ़ेगा और रोजगार के अवसरों में भी तेजी आएगी। सरकार यह भी कहती है कि पहली बार गिग और प्लेटफॉर्म वर्कर जैसे नए वर्ग के श्रमिकों को सामाजिक सुरक्षा का अधिकार मिलेगा, महिलाओं को रात के समय काम करने का अवसर खुलेगा, कार्यस्थल की स्वास्थ्य और सुरक्षा संबंधी व्यवस्थाएँ मजबूत होंगी और सभी श्रमिकों के लिए समय पर वेतन कानूनी रूप से सुनिश्चित किया जाएगा। सरकार का दावा है कि निरीक्षण प्रणाली को दंडात्मक से मार्गदर्शक बनाया गया है, जिससे उद्योग और प्रशासन के बीच भरोसा बढ़ेगा। पुराने कानूनों में उद्योगों को कई बार एक ही बात के लिए दर्जनों रजिस्ट्रेशन कराने पड़ते थे, लेकिन नए श्रमिक कोड में एक पंजीकरण, एक लाइसेंस और एक रिटर्न की व्यवस्था उद्योगों को राहत देगी। सरकार का मानना है कि इससे उद्योगों को सुविधा और श्रमिकों को सुरक्षा दोनों एक साथ मिलेंगी।

अब श्रमिकों के नजरिए से देखा जाए तो नए श्रमिक कोड को लेकर उनके मन में उम्मीदें भी हैं और कुछ चिंताएँ भी। श्रमिकों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि न्यूनतम वेतन की व्यवस्था पूरे देश में एक समान बनाई जा रही है, समय पर वेतन देने का नियम सख्त किया गया है और हर श्रमिक को नियुक्ति पत्र देना अनिवार्य कर दिया गया है। असंगठित क्षेत्र में यह बदलाव बहुत बड़ी राहत है क्योंकि यहाँ अधिकांश मजदूर बिना लिखित समझौते के काम करते थे और अक्सर वेतन समय पर नहीं मिलता था। नए श्रमिक कोड महिलाओं के लिए भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि अब उन्हें रात की शिफ्ट में काम करने की अनुमति मिलेगी, बशर्ते नियोक्ता उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करे। इसी तरह गिग और प्लेटफॉर्म वर्करों को सामाजिक सुरक्षा देना ऐतिहासिक कदम माना जा रहा है क्योंकि यह वह वर्ग है जो तेजी से बढ़ रहा है लेकिन आज तक किसी औपचारिक सुरक्षा ढांचे के बाहर था।

फिर भी श्रमिकों की कुछ चिंताएँ बनी हुई हैं। सबसे बड़ी चिंता यह है कि नए कोड के तहत कंपनियों को छँटनी की प्रक्रिया में कुछ हद तक लचीलापन मिलेगा, जिससे श्रमिकों को डर है कि स्थायी नौकरियों की संख्या कम हो सकती है। निश्चित अवधि वाली नौकरियों की अनुमति मिलने से भी श्रमिकों को लगता है कि कंपनियाँ उन्हें स्थायी कर्मचारी रखने की बजाय छोटे-छोटे अनुबंध पर रख सकती हैं। दूसरी बड़ी चिंता काम के घंटों को लेकर है। बारह घंटे की शिफ्ट की व्यवस्था श्रमिकों के लिए शारीरिक और मानसिक तनाव बढ़ा सकती है, चाहे ओवरटाइम का भुगतान दोगुना ही क्यों न हो। तीसरी चिंता सामूहिक आवाज उठाने की प्रक्रिया से जुड़ी है, जहाँ हड़ताल जैसी प्रक्रियाओं में कुछ अतिरिक्त औपचारिकताएँ जुड़ने से श्रमिक संगठनों को लगता है कि उनकी शक्ति कमजोर हो सकती है। इन चिंताओं का मतलब है कि श्रमिक चाहते हैं कि नए नियम उनकी सुरक्षा को मजबूत बनाएँ, न कि कम करें।

उद्योग जगत का नजरिया भी नए श्रमिक कोड को समझने में बहुत महत्वपूर्ण है। उद्योग लंबे समय से कह रहे थे कि भारत के श्रम कानून इतने जटिल हैं कि निवेश और विस्तार की प्रक्रिया पर नकारात्मक असर पड़ता है। बहुत से छोटे उद्योग केवल इसलिए आगे नहीं बढ़ पाते थे क्योंकि उन्हें अनुपालन पर काफी समय और पैसा खर्च करना पड़ता था। नए श्रमिक कोड में एकीकृत ढांचा, डिजिटल प्रक्रियाएँ और स्पष्ट निरीक्षण व्यवस्था उद्योग जगत के लिए राहत की तरह है। निश्चित अवधि वाले रोजगार में बढ़ी सुविधा से उन्हें मौसमी जरूरतों के अनुसार श्रमिक रखने में आसानी होगी, जिससे उत्पादन क्षमता बढ़ेगी। डिजिटल लाइसेंसिंग और ऑनलाइन निरीक्षण से भ्रष्टाचार की संभावना भी कम होगी और उद्योग अपने काम-काज पर बेहतर ध्यान दे पाएँगे।

हालाँकि उद्योगों की कुछ चिंताएँ भी हैं। सामाजिक सुरक्षा में योगदान बढ़ने से उनकी लागत बढ़ सकती है, खासकर छोटे और मध्यम उद्योगों के लिए जो पहले से ही लागत और प्रतिस्पर्धा के दबाव में काम कर रहे हैं। दूसरी चिंता यह है कि महिलाओं की रात की शिफ्ट में सुरक्षा सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से छोटे उद्योगों पर अतिरिक्त खर्च बढ़ सकता है। तीसरी चिंता यह है कि ईएसआईसी और अन्य संस्थाओं का ढांचा अभी उस स्तर पर नहीं है कि वह एक ही समय में लाखों नए श्रमिकों को गुणवत्तापूर्ण सुविधाएँ दे सके। उद्योग जगत चाहता है कि सरकार इन्हें लागू करने की प्रक्रिया में कुछ समय और लचीलापन दे ताकि वे अपनी व्यवस्था सुचारु रूप से तैयार कर सकें।

इन तीनों दृष्टिकोणों को एक साथ देखा जाए तो यह स्पष्ट है कि नए श्रमिक कोड भारत के श्रम ढांचे को आधुनिक, सरल और श्रमिकहितैषी बनाने की क्षमता रखते हैं। लेकिन यह क्षमता तभी वास्तविक रूप में उभरकर आएगी जब इन्हें लागू करने की प्रक्रिया संतुलित, पारदर्शी और समयबद्ध हो। सभी राज्यों में नियम समय पर तैयार हों, निरीक्षण प्रणाली निष्पक्ष तरीके से लागू हो और सामाजिक सुरक्षा का ढांचा खासकर ग्रामीण और अर्धशहरी क्षेत्रों तक मजबूत रूप में पहुँचे,ये सभी कदम सफलता के लिए आवश्यक हैं। यह भी जरूरी है कि निश्चित अवधि वाली नौकरियाँ स्थायी रोजगार की जगह न ले लें और श्रमिकों को नौकरी की असुरक्षा नहीं बढ़े। साथ ही एमएसएमई क्षेत्र को अतिरिक्त लागत से बचाने के लिए सरकार को कुछ सहायक कदम भी उठाने होंगे।

अंत में यह कहा जा सकता है कि नए श्रमिक कोड भारत को अधिक प्रतिस्पर्धी और मजबूत अर्थव्यवस्था की दिशा में आगे ले जा सकते हैं। ये कोड उद्योगों को सुविधा प्रदान करते हैं, श्रमिकों को सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं और देश के विकास को गति देने की क्षमता रखते हैं। लेकिन इनकी सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि इन्हें संवेदनशीलता, संतुलन और पारदर्शिता के साथ लागू किया जाए। यदि ऐसा होता है, तो ये नए श्रमिक कोड करोड़ों भारतीय श्रमिकों के जीवन को अधिक सुरक्षित, सम्मानजनक और स्थिर बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएँगे।

(लेखक, हरियाणा वार्ता के सम्पादक हैं।